नमस्कार दोस्तों, हम आपका तहेदिल से स्वागत करते है। इस आर्टिकल में हम अपवाह तंत्र किसे कहते हैं? के बारे में चर्चा करेंगे इस पोस्ट में हमने अपवाह तंत्र से जुड़ी हुई कुछ जानकारियों को शेयर किया है जो आपको जरूर पसंद आएगी इस आर्टिकल को पढ़कर आप अपवाह तंत्र संबंधित प्रश्न को हल कर पाएंगे तथा भारत के अपवाह तंत्र के बारे में भी सकते है. क्योंकि इस आर्टिकल में class 9 ncert भारत का अपवाह तंत्र in hindi के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है तथा यह भारत का अपवाह तंत्र आपको अपनी परीक्षा में सफलता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करेगा।
अपवाह तंत्र से क्या तात्पर्य है
अपवाह तंत्र से तात्पर्य - किसी क्षेत्र के जल को कौन-सी नदी बहाकर ले जाती है अर्थात किसी क्षेत्र की जल प्रवाह प्रणाली का एक निश्चित बहिकाओ के माध्यम से हो रहे जलप्रवाह को अपवाह डेग्रीज तथा इन वाहिकाओं के जाल को अपवाह तंत्र कहा जाता है।
अपवाह द्रोणी किसे कहते है
अपवाह शब्द का मतलब एक क्षेत्र या स्थान की नदी तंत्र की व्याख्या करना है अर्थात किसी नदी तंत्र द्वारा जिस क्षेत्र में जल प्रवाहित किया जाता है, उसे उसे उस क्षेत्र की अपवाह द्रोणी कहते हैं।
भारत में अपवाह तंत्र
भारत के अपवाह तंत्र का नियंत्रण मुख्यतः भौगोलीक आकतियों के द्वारा ही होता है। इसी आधार पर भारत की
नदियों को दो वगों में बांटा किया गया है, ये दोनो वर्ग निम्न है -
• हिमालय की नदियाँ तथा
• प्रायद्वीपीय नदियाँ
हिमालय की नदियाँ
भारत के दो मुख्य भौगोलिक क्षेत्रों से उत्पन्न होने के कारण हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ एक-दूसरे से भिन्न हैंं, हिमालय की अधिकतर नदियाँ बारहमासी नदियाँ होती हैं। इनमें वर्ष भर पानी रहता है, क्योंकि इन्हें वर्षा जल अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिघलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता हैै। हिमालय की दो मुख्य नदियाँ सिंधु तथा ब्रहापुत्र है जो की हिमालय के उत्तरी भाग से निकलती हैं। सिंधु तथा ब्रहापुत्र ने पर्वतों को काटकर गॉजों का निर्माण किया है। हिमालय की नदियाँ अपने उत्पत्ति के स्थान से लेकर समुद्र तक के लंबे रास्ते को तय करती हैं। ये अपने मार्ग के ऊपरी भागों में तीव्र अपरदन क्रिया करती है। तथा अपने साथ भारी मात्रा में सिल्ट एवं बालू का संवहन करती हैं। मध्य एवं निचले भागों में ये नदियाँ विसर्प, गोखुर झील तथा अपने बाढ़ वाले मैदानों में बहुत-सी अन्य निक्षेषण आकृतियों का निर्माण करती है। ये पूर्ण विकसित डेल्टाओं का भी निर्माण करती हैं। अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती हैं, क्योंकि इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है। शुष्क मौसम में बडी नदियों का जल भी घटकर छोटी-छोटी धाराओं में बहने लगता है। अगर हिमालय की नदियों की तुलना प्रायद्वीपीय नदियों से करे तो प्रायद्वीपीय नदिया हिमालय की नदियों की तुलना में लंबाई में कम तथा छिछली भी हैंं। फिर भी इनमें से कुछ केंद्रीय उच्चभूमि से निकलती हैं और ये नदिया पश्चिम की तरफ बहती हैं। प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर नदिया बंगाल की खाड़ी में गिरती है क्योंकि ये नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती है।
नदी तंत्र किसे कहते है
सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं। ये नदियाँ लंबी हैं तथा अनेक महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी सहायक नदियां आकर इसमें मिलती है। किसी नदी तथा उसकी सहायक नदियों को नदी तंत्र कहा जाता है।
सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं। ये नदियाँ लंबी हैं तथा अनेक महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी सहायक नदियां आकर इसमें मिलती है। किसी नदी तथा उसकी सहायक नदियों को नदी तंत्र कहा जाता है।
प्रायद्वीपीय नदियाँ
प्रायद्वीपीय भारत में मुख्य जल विभाजक का निर्माण पश्चिमी घाट द्वारा होता है, जो पश्चिमी तट के निकट उत्तर से दक्षिण की ओर स्थित है। प्रायद्वीपीय भाग की अधिकतर मुख्य नदियाँ जैसे - महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी पूर्व की ओर बहती हैं, तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। ये नदियाँ अपने मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हैं। पश्चिमी घाट से पश्चिम में बहने वाली अनेक छोटी धाराएँ हैं। नर्मदा एवं तापी, दोनो ही बड़ी नदियाँ हैं, जो कि पश्चिम की तरफ बहती हैं और ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं। प्रायद्वीपीय नदियों की अपवाह द्रोणियाँ आकार में अपेक्षाकृत छोटी हैं।
प्रमुख बिंदु
- विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी अमेजन नदी की है।
- भारत में गंगा नदी की अपवाह द्रोणी सबसे बड़ी है।
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